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Arthritis – जोड़ो का दर्द का सम्पूर्ण उपचार

जैसे-जैसे इंसान की जिंदगी आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे वो कई समस्याओं का भी शिकार होते चला जाता है। वहीं, आज के दौर में तो लगभग हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी समस्या से जूझ रहा है। इसके पीछे कहीं न कहीं हमारा खानपान, हमारी खराब दिनचर्या और हमारा अनुशासन का पालन न करना शामिल है |

जोड़ों का दर्द विभिन्न कारणों से हो सकता है। उनमें से कुछ में एक विशिष्ट प्रकार का गठिया शामिल हो सकता है जिसमें जोड़ों की सूजन से दर्द होता है जबकि फाइब्रोमायल्गिया और अंडरएक्टिव थायरॉयड अन्य कारण हैं जो सूजन से जुड़े नहीं हैं। विशिष्ट कारण के आधार पर, जोड़ों के दर्द की प्रकृति भिन्न हो सकती है।

 

जोड़ों का दर्द के लक्षण क्या हैं?
जोड़ों के दर्द से जुड़े कुछ सबसे आम संकेत और लक्षण हैं:

  • गंभीर या मध्यम दर्द
  • जोड़ो का अकड़ जाना
  • संयुक्त गतिहीनता
  • संयुक्त लाली
  • जोड़ में सूजन
  • संयुक्त कोमलता
  • जोड़ों में गर्मी
  • संयुक्त विकृति
  • जॉइंट लॉकिंग

 

क्या जोड़ों का दर्द इसका संकेत है?

  • ऑस्टियोआर्थराइटिस: यह जोड़ों की सूजन की सबसे आम स्थिति है।
  • रुमेटीइड गठिया: यह एक ऑटोइम्यून प्रकार का गठिया है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपनी स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करती है।
  • गाउट: गठिया का यह रूप पैर की उंगलियों के जोड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। तनाव और मोच या अन्य चोटें।

 

ऑस्टियोआर्थराइटिस

आजकल हमारी lifestyle में बोहत बदलाव आ गए है। जहा पहले लोग physical काम ज्यादा करते थे वो आज mental work करते है, इसकी वजह से हमारी body जितनी करनी चाहिए उतनी फिजिकल activity नहीं करती, repetitive काम अगर हम कर रहे हो या heavy weights से जिम्मिंग कर रहे हो तो भी यह आर्थराइटिस का कारण बन सकता है।आर्थराइटिस ज्यादातर जो हमारे weight bearing joints है जैसे की hip joint , knee joint में पाया जाता है।

  • Grade 1 आर्थराइटिस – इसमें बोहत कम दर्द होता है जो पेशेंट्स नजरअंदाज कर देते है।
  • Grade 2 आर्थराइटिस – दर्द हो रहा है ये हमें समझता है यानी दर्द बढ़ जाता है।
  • Grade 3 आर्थराइटिस – इसमें हमें दर्द उस joint की movement करते समय महसूस होता है।
  • Grade 4 आर्थराइटिस – इसमें दर्द बोहत ही ज्यादा बढ़ जाता है जो सेहेन करना कठिन होता है, joints में सूजन आ जाती है, चलना फिरना कठिन हो जाता है।

 

रुमेटीइड गठिया

ऑस्टियोआर्थराइटिस के विपरीत रूमेटाइड अर्थराइटिस, जॉइंट लाइनिंग को प्रभावित करता है और सूजन और दर्द का कारण बनता है जो अंततः हड्डियों और जोड़ों के विकृती का कारण हो सकता है। रूमेटाइड अर्थराइटिस के परिणामस्वरूप होने वाली सूजन अन्य शरीर के अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकती है।

गठिया अगर बढ़ जाता है तो दुर्बल हो सकता है। सिनोवियम (जोड़ों के लिए तरल पदार्थ) सूजन के परिणामस्वरूप गाढ़ा हो जाता है जो समय के साथ हड्डी, कार्टिलेज और जॉइंट के कुछ हिस्सों को नुकसान पहुंचा सकता है। जोड़ों को पकड़े हुए लिगामेंट और टेंडन्स खिंच जाते हैं और कमजोर हो जाते हैं।

 

गाउट

गाउट (Gout) गठिया का एक जटिल रूप है जो किसी को भी प्रभावित कर सकता है। गाउट (Gout) को हिंदी में वातरक्त कहा जाता है। गाउट होने का मुख्य कारण है रक्त में यूरिक एसिड (Uric acid) का स्तर बढ़ जाना।

शरीर में इसकी मात्रा बढ़ जाने पर यूरिक एसिड के क्रिस्टल बनने लगते हैं और शरीर में हड्डियों के जोड़ों में जम जाते हैं, लिकिन मुख्य तौर पर यह पैर की उंगलियों के सबसे बड़े जोड़ (पैर का अंगूठा) को अधिक प्रभावित करता है।

 

सर्वाइकल पेन

आमतौर पर सर्वाइकल का दर्द (Cervical Pain) शरीर के अंगों में स्टिफनेस की वजह से होता है।

सर्वाइकल पेन कई कारणों की वजह से होता है जैसे गर्दन की हड्डी बढ़ने से, लम्बे समय तक एक ही स्थिति में बैठने से, खराब मुद्रा, झुक कर बैठना, तनाव और कई अन्य गलत आदतों की वजह से सर्वाइकल पेन हो सकता है।

यह दर्द युवाओं से लेकर बुर्जुगों तक में देखने को मिल रहा है। अक्सर लोग सर्वाइकल पेन को गर्दन का दर्द और अकड़न समझकर नजरअंदाज कर देते हैं।

 

साइटिका पेन

साइटिका एक सामान्य, लेकिन बहुत ही गंभीर समस्या है। दरअसल, कमर से संबंधित नसों में से अगर किसी एक में भी सूजन आ जाए तो पूरे पैर में असहनीय दर्द होने लगता है, जिसे साइटिका कहा जाता है।

50 साल से अधिक उम्र के लोगों में यह समस्या आम है। इसके अलावा अधिक मेहनत करने वाले या भारी वजन उठाने वाले लोगों में भी यह समस्या अधिकतर देखने को मिलती है

 

स्लिप डिस्क 

हमारी रीढ़ की हड्डी में 33 कशेरुकाएं (हड्डियों की शृंखला) होती हैं, और ये कशेरुकाएं डिस्क से जुड़ी रहती हैं। ये डिस्क प्राय: रबड़ की तरह होती है, जो इन हड्डियों को जोड़ने के साथ उनको लचीलापन प्रदान करती है। वास्तव में ये डिस्क रीढ़ की हड्डी में लगे हुए ऐसे पैड होते हैं, जो उसे किसी प्रकार के झटके या दबाव से बचाते हैं।

प्रत्येक डिस्क में दो भाग होते हैं; एक जेल जैसा आंतरिक भाग और दूसरा एक कड़ी बाहरी रिंग। चोट लगने या कमजोरी के कारण डिस्क का आंतरिक भाग बाहरी रिंग से बाहर निकल सकता है, इसे स्लिप डिस्क कहते हैं। इसे हर्निएटेड या प्रोलेप्स्ड डिस्क या रप्चर्ड डिस्क भी कहते हैं। इसके कारण दर्द और बेचैनी होती है। अगर स्लिप डिस्क के कारण कोई स्पाइनल नर्व दब जाती है तो सुन्नपन और तेज दर्द की समस्या हो जाती है। गंभीर मामलों में सर्जरी की आवश्यकता होती है।

स्लिप डिस्क की परेशानी महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक होती है। इसके निम्न कारण हो सकते हैं –

  • शारीरिक रूप से सक्रिय न रहना ‘ खराब पॉस्चर में देर तक बैठे रहना ‘ मांसपेशियों का कमजोर हो जाना ‘ अत्यधिक झुककर भारी सामान उठाना ‘ शरीर को गलत तरीके से मोड़ना या झुकना ‘ क्षमता से अधिक वजन उठाना ‘ रीढ़ की हड्डी में चोट लगना ‘ बढ़ती उम्र। .
  • सबसे पहले डॉक्टर छूकर शारीरिक परीक्षण करते हैं। इसके बाद रीढ़ की हड्डी व आसपास की मांसपेशियों में आई गड़बड़ी को समझने के लिए एक्स-रे, सीटी स्कैन्स, एमआरआई व डिस्कोग्राम्स आदि की सलाह दी जाती है।

 

सभी प्रकार के जोड़ो के दर्द का सम्पूर्ण इलाज

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